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अपने गांव के माटी
लिखता हूँ फिर मिटाता हूँ
रे मूर्ख प्राणी इतना क्यों इठलाता है
चांद की चांदनी से खूबसूरत है तू
मां के लिए दिल से
ये कैसा समय है आया
 अपने गांव के माटी
मन की मन: स्थिति
पतझड़
लिखता हूँ फिर मिटाता हूँ
नई सुबह
ऐ जिंदगी सुन ले ज़रा
मां तो केवल मां होती है
हिंदी दिवस पर कविता : मेरी प्यारी भाषा हिंदी
अयोध्या की पावन भूमि  : राम जन्मभूमि
आगे ही आगे बढ़ते रहो
chandrayaan 2 : चंद्रयान -२ और चांद
बच्चों से खेल का मैदान अब कहीं खो सा गया है
मेरी खामोशियां
स्वप्न में भी सोच नहीं सकता