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अपने गांव के माटी





अपने गांव के माटी एइसन

छुवते मनवां हरशावे ला

पुरखन  के धरती बा एइसन

उकरा शीश झूकाइला

सोचला भर से पहुंच जाइला

जैसे माई बोलावेले 

मनवां त गौवें में लागेला

इहांवा त कैसों दिन बिताई ला

दो जून की रोटी के खातिर

छोड़ परिवार के आइल बानी

दिल पर पाथर रख के अपनी

इकठो सपना सजावत बानी

केतना पूरा होखे ला 

ई त समय बताई

लेकिन मनवा त व्हिंजा ही भागे

जहां बितल बचपन और लड़काई


@अरुण पांडेय

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