रे मूर्ख प्राणी इतना क्यों इठलाता है
रे मूर्ख प्राणी इतना क्यों इठलाता है
रोते हुए आता है और रोते ही जाता है
जब तू आया इस धरती पर,
तबसे रूदन शुरू किया
बचपन से शुरू सिलसिला मृत्यु तक
चलते जाता है
रोते हुए आता है और रोते ही जाता है
रे मूर्ख प्राणी इतना क्यों इठलाता है
रोते हुए आता है और रोते ही जाता है
बचपन में देख खेल खिलौने,
ये भी पाऊं वो भी पाऊं , इस चाह में
फिर रूदन शुरू किया
रे मूर्ख प्राणी इतना क्यों इठलाता है
रोते हुए आता है और रोते ही जाता है
जब आया तू गृहस्थ जीवन में
तो अपनो ही ने रोने को मजबूर किया
हुए वृद्ध आई जब मृत्यु ,मोह माया ने ऐसा घेरा
ये भी छूटा वो भी छूटा, ये देख फिर से रूदन शुरु किया
रे मूर्ख प्राणी इतना क्यों इठलाता है
रोते हुए आता है और रोते ही जाता है
यदि रोया होता तू प्रभु सुमिरन में
तो ये रोना तेरी भक्ति होती
सुमिरन करता तू प्रभु की
तो जन्म मरण से मुक्ति होती
@अरुण पांडेय
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