ये कैसा समय है आया
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ये कैसा समय है आया
चारों तरफ बेबसी का
आलम है छाया
इतना बेबस कभी न था इंसान
किसी घर मातम तो कहीं
मायूसी का है साया
ये कैसा समय है आया
किसी ने कहां ऐसा सोचा था
ऐसा दिन भी आएगा
जब शासन प्रशासन सब ही
बौना पड़ जायेगा
ये कैसा समय है आया
असमय अपनों से अपने
बिछड़ रहे है
अपनी नजरों के सामने यूंही
तड़प रहे हैं
ये कैसा समय है आया
न जानें प्रकृति कैसा खेल
खिला रही है
लगता है हम सबको ही
कोई सबक सिखा रही है
ये कैसा समय है आया
@अरुण पांडेय
(करोना काल में लिखी कविता)
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