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लिखता हूँ फिर मिटाता हूँ





लिखता हूँ फिर मिटाता हूँ
कुछ लिखने की कोशिश करता हूँ
मन में अंतर्द्वंदों की सरिता जो बहती है
फिर शांत होती उन लहरों की शीतलता
देख मैं हर्षित हो जाता हूँ
लिखता हूँ फिर मिटाता हूँ
कुछ लिखने की कोशिश करता हूँ
ये मेरा मन कहाँ कहाँ नही घूम आता है
जो सोचा नही देखा नहीं वहाँ भी ले जाता है
ये कितना गजब है इसकी अपनी ही समझ है
कभी कभी इसके चक्कर में फंस जाता हूँ
लिखता हूँ फिर मिटाता हूँ
कुछ लिखने की कोशिश करता हूँ
ये मन बड़ा चंचल है ये बात नहीं सुनता 
बच्चों की तरह ही ये हरकत है करता
मन के हारे हार मन के जीते जीत
मीत बना कर ही इसे साथ लिये चलता हूँ
लिखता हूँ फिर मिटाता हूँ
कुछ लिखने की कोशिश करता हूँ


@अरुण पांडेय

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