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निर्भीक बनो

निर्भीक बनो


तुम्हारे भीतर वह निर्भयस्वरूप आत्मदेव बैठा हुआ है, फिर भी तुम भयभीत होते हो ? अपने निर्भय स्वरूप को जानो और सब निर्बलताओं से मुक्त हो जाओ। उखाड़ फेंको अपनी सब गुलामियों को, कमजोरियों को। दीन-हीन-भयभीत जीवन को घसीटते हुए जीना भी कोई जीवन जीना है ? 

यदि तुमको स्वर्ग का फरिश्ता बनाया जाय या मोतियों का कोष दिया जाय और तुम्हारी प्रसन्नता या निर्भयता पर रोक लगाई जाय तो वह पद या मोतियों का कोष भी ठुकरा देना। 

जो भयभीत है उसे लोग और भयभीत करते हैं और जो निर्भय है उसके आगे संसार झुकता है। यदि तुम निर्भय हो, प्रसन्न हो तो दुःखी व्यक्ति भी तुम्हारे पास आकर प्रसन्न हो उठेगा, वह अपना दुःख भूल जायेगा और यदि तुम भयभीत हो तो कुत्ते का पिल्ला भी तुम्हारे पीछे दौड़कर तुम्हें भयभीत करने का मजा ले लेगा। 

राजा होने से निर्भयता नहीं आती, नेता होने से निर्भयता नहीं आती, पैसा होने से निर्भयता नहीं आती, प्रसिद्धि होने से निर्भयता नहीं आती, अधिक लोग मानने लगे इससे निर्भयता नहीं आती, अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित होने से भी निर्भयता नहीं आती। निर्भयता तो भीतर की स्थिति है। निर्भयता तो जो भीतर से निर्भय हो चुके हैं, उनका संग करने से आती है। 

मानव जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है परम निर्भयता। जो परम निर्भय हो गया अपने आत्मस्वरूप को जानकर, उसे फिर किसी प्रकार की कोई उपलब्धि करना शेष नहीं रहता। 

तलवार या बन्दूक रखने वाले तो निर्भय होते ही होंगे इस भ्रांति में नहीं पड़ना। निर्भयता भीतर की चीज है। 

बन्दूक या रायफल जैसे बाहरों साधनों के आधार पर टिकी निर्भयता नहीं है। वह निर्भयता के नाम पर धोखा है। 

भय मनुष्य जीवन का कलंक है। 

तुम ऐसे निर्भय हो जाओ कि तुम्हारी निर्भयता को देखकर सामने से आती हुई मौत भी भय से काँप उठे। 

जो भीतर से निर्भय होता है उसके सन्मुख रीछ और सिंह जैसे खूंखार और हिंसक पशु भी अपना हिंसक स्वभाव भूल जाते है। परम निर्भयता तो ऐसा अमृत है कि मृत्यु भी लौट जाती है, यम का डंडा भी निस्तेज हो जाता है, अस्त्र-शस्त्र कुण्ठित हो जाते हैं और प्रकृति भी अपने नियम बदलकर व्यवहार करती है। 

ऐसा कोई गुण नहीं है जो परम निर्भयता से पैदा न होता हो और ऐसा कोई दुर्गुण नहीं है जो भय से पैदा न होता हो। 

यह दृश्य संसार इन्द्रजाल की तरह मिथ्या है। अतः उसमें आसक्त होना या उससे भयभीत होना व्यर्थ है। 

साधना के राह पर हजार विघ्न होंगे, लाख-लाख काँटे होंगे। उन सब पर निर्भयतापूर्वक पैर रखोगे तो वे काँटे फूल बन जायेंगे। 

'हमारा सुख कहीं छिन न जाय' ऐसा भयभीत जीवन भी कोई जीवन है ? यह तो मौत से भी बदतर है। इसलिए निर्भय जीवन जीना ही असली जीवन है। 

साधना-मार्ग में पतन होना यह पाप नहीं है लेकिन पतन होने के बाद पड़े ही रहना, उठना नहीं, यह पाप है। पतन और असफलता से डरो नहीं। साधना के मार्ग पर हजार बार निष्फलता मिले फिर भी रुको मत। पीछे न मुड़ो। निर्भयतापूर्वक साहस जारी रखो। तुम अवश्य सफल हो जाओगे। 

निर्भयता ही जीवन है, भय ही मृत्यु है।

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