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Hindi Poem (आज फिर चला शहर)



 Hindi Poem (आज फिर चला शहर)


आज फिर चला शहर
अपने गांव से
जैसे उड़ा कोई पंछी 
अपने पेड़ों की डाल से
मिट्टी की खूसबू और कुछ
अहसास  लिए
फिर जल्दी आऊंगा मन में 
यह खयाल लिए
गांव शहर का भेद अजब है
हैं लोग यहां भी लोग वहां भी
पर चेहरों के भाव अलग हैं
चहुं ओर हरियाली दिखती
मन का मोर पपीहा गाता
शहर के ऊंचे ऊंचे भवनों में
कैद हो जैसे चिड़िया दिखती
पूर्वजों की माटी  है चंदन  
जैसे करती हो अभिनंदन
बार बार वहां मै जाऊं
करने उस माटी को वंदन

@अरुण पांडेय

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