पर कर देता दो जिंदगी ' ख़ाक '
निरपराध है नारी सहती
ऐसा कैसा धर्म है ये
अपनी मर्जी पूरी करने का
पुरुषों का हथियार है ये
कितनी हसरत पाले दिल में
जाती जिसके साथ है वो
एक शब्द के प्रहार से
घर से बेघर है हो जाती है वो
धर्म नहीं अधर्म है ये
जो पीड़ा देता औरो को
कर ईमान तू पक्का अपना
बदल दे घटिया सोचों को
तीन तलाक़ कानून बना
स्वीकारो अब नियमो को
समय के साथ बदलाव जरूरी
मिले सम्मान हर नारी को
@अरुण पांडेय
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