अपने गांव के खेतों में खलिहानों में
बड़ा मन लगता है गांव की गलियों में
वो मिट्टी की खुसबू वो कोयल की कूक
वो गांव की भाषा वो मीठी सी बोली
एक अजब ठहराव सा लगता है
हर कोई अपना सा लगता है
अपने गांव के खेतों में खलिहानों में
बड़ा मन लगता है गांव की गलियों में
वो गिल्ली- डंडा वो कंचो का खेलना
देर होने पे मां का वो गुस्सा दिखाना
अपने गांव के खेतों में खलिहानों में
बड़ा मन लगता है गांव की गलियों में
वो बचपन की यादें वो बचपन की बातें
वो सब याद आती हैं जाते ही गलियों में
अपने गांव के खेतों में खलिहानों में
बड़ा मन लगता है गांव की गलियों में
@अरुण पांडेय
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